वर्तमान में अखिल भारतीय धाकड़ महासभा, तो बिल्कुल ही निष्क्रीय हो चुकी है! महासभा, का कार्यकाल सिर्फ तीन वर्ष का होता है, लेकिन राजनीतिक हठधर्मिता ने समाज में अपनी घुसपैठ से दो बार तय अधिवेशन को विवादित कर निरस्त करवाया! कार्यकाल की पूर्णता के बाद भी सक्रिय है!
महासभा, के अधिवेशन को 5 वर्ष 9 माह हो चुके हैं पदस्थ जमे हुए हैं, शायद दूसरा कार्यकाल भी पूरा कर ही लेंगे, बिना अधिवेशन के? किसी को अधिवेशन की चिंता नही है! आराम से संचालन हो रहा है और न ही पदमुक्त होना चाहते हैं! यही हठधर्मिता समाज में नेतृत्व के प्रति घृणास्पद होती जा रही है, फिर भी अपने पदस्थ होने का राजनीतिक लाभ अर्जित करने के लिए पदस्थ सक्रीय हैं!भविष्य शंकास्पद होने से, जितना हो सके उतना कर ले ?
समाज की अपेक्षाएं नेतृत्व से यही रहती है कि, वह माहौल को खुशनुमा व उल्लासपूर्ण बनाने का सतत् प्रयास कर, अपनी आत्म सम्रद्धि का परिचय दें? जिस प्रकार समाज में परिस्थितियां अपने अनुकूल नहीं होती, वैसे ही समाज में सभी व्यक्ति समान विचारधारा के नही होते, लेकिन सफलता तो उन्हीं के हाथों में होती है, जो विषम कठिनाई के दौर में हर तरह की विचार धारा के व्यक्ति के साथ सामंजस्य बिठा कर संयमित उपलब्धि का नेतृत्व परिचय दें, तभी समाज को ‘महासभा, नेतृत्व पर विश्वास कायम हो कर ‘अखिल भारतीय धाकड़ महासभा, के प्रति समाज आत्मीय दृष्टिकोण से देखना प्रारंभ कर दे , अन्यथा महासभा, के प्रति समाज अपनी आस्था खो देगा, जिसे पुन: गुणवत्ता लिए हुए स्थापित करना मुश्किल होगा ?
समाज में एेसा कोई प्रयास नहीं होना चाहिए, जिससे उसकी गरिमा धूमिल होती हो, अपने स्वार्थ के खातिर नैतिकता को कटघरे में कैद न हो ने दें !
समाज और राष्ट्र के विकास में, अधिवेशन, चिंतन और मंथन को दिशा देने वाले होते हैं, जिससे समाज की समस्याओं का हल ढूंढना संभव होता है!
हठ इतना भी न बढ़े कि समाज भरोसा करना ही बंद कर दे ?
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