भगवान श्रीगणेश आदि देव हैं और विद्या-बुद्धि के दाता हैं। उन्होंने हर युग में अवतार लिया। कलियुग में श्रीगणेश और हनुमान जी ही ऐसे देवता हैं जिनका पूजन तुरंत फलदायी है। श्रीगणेश और हनुमान जी अपने भक्तों से कभी नहीं रूठते। अपने भक्तों की सभी भूलों को क्षमा कर देते हैं।
भगवान गणपति की पूजा के बिना कोई भी मांगलिक कार्य आरंभ नहीं किया जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ऊं को साक्षात गणेश जी का स्वरूप माना गया है। प्रत्येक मंत्र से पहले ऊं लगाने से उस मंत्र का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। मां पार्वती ने पुण्यक नामक उपवास किया था। इसी उपवास से श्री गणेश पुत्र रूप में प्राप्त हुए। भगवान श्री गणेश के कानों में वैदिक ज्ञान, मस्तक में ब्रह्मलोक, नेत्रों में लक्ष्य, दाएं हाथ में वरदान, बाएं हाथ में अन्न, सूंड में धर्म, पेट में सुख-समृद्धि, नाभि में ब्रह्मांड और चरणों में सप्तलोक हैं।




